Today : 13 Nov. 2024

Shri Krishna Chalisa ( श्री कृष्ण चालिसा )

॥ श्री कृष्ण चालिसा ॥

दोहा

बंशी शोभित कर मधुर , नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बा फल , पिताम्बर शुभ साज॥

जय मनमोहन मदन छवि , कृष्णचन्द्र महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय , राखहु जन की लाज॥

चौपाई

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन , जय वसुदेव देवकी नन्दन
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे , जय प्रभु भक्तन के दृग तारे

जय नट-नागर नाग नथैया , कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो , आओ दीनन कष्ट निवारो॥॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी , होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो , आज लाज भारत की राखो

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे , मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
रंजित राजिव नयन विशाला , मोर मुकुट वैजयंती माला॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे , कटि किंकणी काछन काछे
नील जलज सुन्दर तनु सोहे , छवि लखि सुर नर मुनिमन मोहे॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले , आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पुतनहि तारयो , अका बका कागासुर मारयो॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला , भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई , मसूर धार वारि वर्षाई॥

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो , गोवर्धन नखधारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई , मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो , कोटि कमल जब फूल मंगायो
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें , चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥

करि गोपिन संग रास विलासा , सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहारयो , कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई , उग्रसेन कहं राज दिलाई
महि से मृतक छहों सुत लायो , मातु देवकी शोक मिटायो॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी , लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भिन्हीं तृण चीर सहारा , जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

असुर बकासुर आदिक मारयो , भक्तन के तब कष्ट निवारियो
दीन सुदामा के दुःख टारयो , तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥

प्रेम के साग विदुर घर मांगे , दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखि प्रेम की महिमा भारी , ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

भारत के पारथ रथ हांके , लिए चक्र कर नहिं बल ताके
निज गीता के ज्ञान सुनाये , भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥

मीरा थी ऐसी मतवाली , विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी , शालिग्राम बने बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो , उर ते संशय सकल मिटायो
तब शत निन्दा करी तत्काला , जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई , दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला , बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया , डूबत भंवर बचावत नैया
सुन्दरदास आस उर धारी , दयादृष्टि कीजै बनवारी॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो , क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै , बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

दोहा

यह चालीसा कृष्ण का , पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल , लहै पदारथ चारि॥

॥ इतहि श्री कृष्ण चालिसा ॥

Stay Happy and Healthy

Jai , Shri Kunjbihari Lal ( श्री कुंजबिहारी लाल की , जय ) 🙏

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